आचार्य भिक्षु का जीवन परिचय : तेरापंथ संप्रदाय के प्रथम आचार्य
तेरापंथ के प्रवर्तक श्रीमद् भिक्षु स्वामी का जन्म वि. सं. १७८३, आषाढ़ शुक्ला १३ (१ जुलाई, १७२६) को कंटालिया (मारवाड़) में हुआ। आपके पिता का नाम बल्लूजी तथा माता का नाम दीपांजी था।
जैन धर्म के तेरापंथ संप्रदाय के संस्थापक एवं प्रथम आचार्य थे। आपकी जाति ओसवाल तथा वंश संकलेचा था। आप प्रतिभाशाली धार्मिक व्यक्ति थे। पत्नी का देहान्त हो जाने पर आप अकेले ही दीक्षा लेने को उद्यत हुए, परन्तु आपकी माता ने दीक्षा की आज्ञा नहीं दी।
तत्कालीन स्थानकवासी सम्प्रदाय के आचार्य श्री रुघनाथजी के समझाने पर माता ने कहा–'महाराज ! मैं इसे दीक्षा की अनुमति कैसे दूं ? क्योंकि जब यह गर्भ में था तब मैंने सिंह का स्वप्न देखा था, इसलिए यह सिंह जैसा पराक्रमी होगा ।' तब आचार्य रुघनाथजी ने कहा-'बाई ! यह तो बहुत अच्छी बात है। तेरा बेटा साधु बनकर सिंह की तरह गूंजेगा।' इस प्रकार उनके समझाने पर माता ने राजी होकर दीक्षित होने की आज्ञा दे दी। आपने वि. सं. १८०८ मृगसिर कृष्णा १२ (सन् १७५१) को बगड़ी (मारवाड़) में उनके पास दीक्षा ग्रहण की।
आपकी दृष्टि पैनी थी । तत्त्व की गहराई में पैठना आपके लिए स्वाभाविक बात थी। आप थोडे ही वर्षों में जैन शास्त्रों में पारंगत पण्डित बन गए। वि. सं. १८१५ के आस-पास आपके मस्तिष्क में साधु-वर्ग की आचार-विचार सम्बन्धी शिथिलता के प्रति एक क्रांति की भावना पैदा हुई । आपने अपने क्रान्तिपूर्ण विचारों को आचार्य रुघनाथजी के सामने रखा ।
दो वर्ष तक विचार-विमर्श होता रहा पर कोई संतोषजनक निर्णय नहीं हुआ तब आप वि. सं. १८१७ चैत्र शुक्ला ह को बगड़ी में उनसे पृथक् हो गए। आपने अपना पहला पडाव गांव के बाहर श्मसान में जैतसिंहजी की छतरियों में किया। वे छतरियां आज भी विद्यमान हैं।
स्थान-स्थान पर आचार्य भिक्षु का विरोध होने लगा। वे विरोध को समभाव से सहते हुए विचरण करते रहे।
वि.सं. १८१७ आषाढ़ शुक्ला १५ (सन् १७६०) के दिन केलवा (मेवाड़) में आपने पुनः शास्त्र-सम्मत दीक्षा ग्रहण की। उस समय आपके आदेश में १२ साधु थे। कई आपकी सेवा में और कई दूसरी जगह थे। उसी दिन से स्वामीजी के नेतृत्व में एक सुसंगठित साधु-संघ का सूत्रपात हुआ और थोड़े समय के बाद संघ 'तेरापंथ' के नाम से प्रख्यात हो गया।
वि. सं. १८३१ तक का आपका जीवन अत्यन्त संघर्षमय रहा। वह १५ वर्ष का समय तपस्या, कठोर साधना एवं संघ की भावी रूपरेखा का चिंतन और शास्त्रों का गम्भीर अध्ययन करने में बीता ।
वि. संवत् १८३२ में आपने अपने प्रमुख शिष्य भारमलजी को युवाचार्य-पद दिया और उसके साथ-साथ संघीय मर्यादाओं का भी सूत्रपात किया। आपने पहला मर्यादा-पत्र उसी वर्ष मृगसिर कृष्णा ७ को लिखा। उसके बाद समय-समय पर आप नए-नए नियमों से संघ को सुदृढ़ करते रहे।
आपके शासन-काल में ४६ साधु और ५६ साध्वियां दीक्षित हुईं। उनमें आचार्य भारमलजी, मुनिश्री थिरपालजी, फतेहचन्दजी, हरनाथजी, टोकरजी, खेतसीजी, वेणीरामजी, हेमराजजी आदि साधु उल्लेखनीय हैं।
वि. सं. १८६० सिरियारी (मारवाड़) में भाद्रव शुक्ला १३ (सन् १८०३) के दिन सातप्रहर के अनशन में आपकी समाधिपूर्वक मृत्यु हुई। उस समय आपकी आयु ७७ वर्ष की थी।
तेरापंथ के आचार्यों सूची
प्रश्न : भिक्षु स्वामी के जन्म का वर्ष और तिथि बताओ ।
तेरापंथ के प्रवर्तक श्रीमद् भिक्षु स्वामी का जन्म वि. सं. १७८३, आषाढ़ शुक्ला १३ (१ जुलाई, १७२६) को कंटालिया (मारवाड़) में हुआ।
प्रश्न : स्वामीजी ने दीक्षा किसके पास ली?
आचार्य श्री रुघनाथजी
प्रश्न : स्वामीजी स्थानकवासी सम्प्रदाय से पृथक कहां और कब हुए ?
वि. सं. १८१७ चैत्र शुक्ला ह को बगड़ी में उनसे पृथक् हो गए।
प्रश्न : उल्लेखनीय संतों में कोई चार नाम बताओ।
आचार्य भारमलजी, मुनिश्री थिरपालजी, फतेहचन्दजी, हरनाथजी, टोकरजी, खेतसीजी, वेणीरामजी, हेमराजजी आदि साधु उल्लेखनीय हैं।
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