पाप से डरो : जैन कहानी
पाप से डरो
एक दिन कई साधु आपस में बातचीत कर रहे थे कि इन बालकों में दो तो नरकगामी है और एक स्वर्ग-गामी है। उपाध्याय ने यह सब सुन लिया और उनकी परीक्षा के लिए आटे के तीन मुर्गे बनाए जो देखने में असली मुर्गे जैसे थे ।
और तीनों शिष्यों को बुलाकर कहा-एक-एक मुर्गा ले जाओ और जहां कोई नहीं देखता हो वहां इन्हें ले जाकर मार डालो ।
वसु और पर्व ने एक अन्धेरी गुफा में जाकर अपने-अपने मुर्गों को मार डाला, परन्तु नारद घूमकर जैसे गया, वैसे ही लौट आया ।
उपाध्याय ने उनसे पूछा-क्यों, मार आये?
वसु और पर्वत ने कहा-जी हां, पर नारद ने कहा-जी नहीं ।
उपाध्याय ने नारद से पूछा-तुमने मेराआदेश क्यों नहीं माना ?
नारद - मैंने तो आपके आदेश का ही पालन किया है। मुझे तो ऐसा कोई स्थान नहीं मिला, जहां कोई भी नहीं देखता हो ।
उपाध्याय - तुम कहीं एकांत में नहीं गए होगे?
नारद - मैं बहुत दूर घने जंगल में चला गया था और ज्योंही उसे मारने लगा, त्योंही मुझे याद आया कि और कोई नहीं तो परमात्मा तो देख ही रहे हैं। बस, मैंने सोच लिया कि अब तो कोई भी स्थान ऐसा नहीं है जहां कोई न देखता हो।
इस परीक्षा से उपाध्याय ने जान लिया कि वसु और पर्वत की दुर्गति होगी और नारद की सद्गति ।
किसी को जो व्यक्ति मारने में संकोच नहीं करता वह नरकगामी होता है और जो व्यक्ति किसी को मारने में संकोच का अनुभव करता है वह स्वर्गगामी होता है।
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