तेरापंथ
श्वेताम्बर तेरापन्थ, जैन धर्म में श्वेताम्बर संघ की एक शाखा का नाम है। इसका उद्भव विक्रम संवत् 1817 (सन् 1760) में हुआ। इसका प्रवर्तन मुनि भीखण (भिक्षु स्वामी) ने किया था जो कालान्तर में आचार्य भिक्षु कहलाये।आचार्य भिक्षु स्थानकवासी सम्प्रदाय में दीक्षित हुए । आठ वर्ष तक वहां रहे । आचार और विचार में मतभेद होने के कारण वे वहां से अलग हो गए । वे कोई नया संगठन करना नहीं चाहते थे। आचार का विशुद्ध पालन करना ही उनका एकमात्र लक्ष्य था ।
जब वे पृथक् हुए तब उनके साथ पांच साधु थे। जोधपुर की घटना है कि वहां एक दुकान में तेरह श्रावक सामायिक कर रहे थे। उसी समय स्थानीय दीवान फतहमलजी सिंघी घोड़े पर उधर से आ निकले। उन्होंने श्रावकों से पूछा-आप यहां सामायिक क्यों कर रहे हैं ? श्रावकों में गेरूलालजी व्यास वहीं थे। इसके उत्तर में उन्होंने बतलाया कि हमारे गुरु ने स्थानक का परित्याग कर दिया है, इसलिए स्थानक को छोड़कर हम यहां सामायिक कर रहे हैं। दीवानजी के आग्रह पर उन्होंने सारा विवरण कह सुनाया । उस समय वहां एक सेवक जाति का कवि पास में खड़ा था । उसने तेरह की संख्या को ध्यान में रखकर तत्काल एक दोहा बना डाला ।
उस समय आचार्य भिक्षु बीलाड़ा या उसके समीपवर्ती किसी क्षेत्र में थे। उन्होंने नामकरण के समय की सारी घटना को सुना तो उनकी प्रतिभा ने उस शब्द को स्वीकार कर लिया। तब उसी समय आसन छोड़ व हाथ जोड़कर अपने प्रभु को सम्बोधन करते हुए कहा-'हे प्रभो ! यह तेरा पंथ है' यह तुम्हारा मार्ग है। हम केवल इस मार्ग पर चलने वाले हैं।
आपने तेरापंथ का दूसरा अर्थ करते हुए कहा-जो तेरह नियमों का पालन करता है वह तेरापंथी है।
तेरह नियम
तेरापंथ के प्रमुख तेरह नियम हैं-पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्ति ।
पांच महाव्रत
१. अहिंसा
२. सत्य
३. अस्तेय
४. ब्रह्मचर्य
५. अपरिग्रह
पांच समिति
१. ईर्या समिति
२. भाषा समिति
३. एषणा समिति
४. आदान निक्षेप समिति -
५. परिष्ठापन समिति
तीन गुप्ति
१. मनो गुप्ति
२. वाक् गुप्ति
३. काय गुप्ति
इस प्रकार आचार्य भिक्षु के पंथ का नाम तेरापंथ प्रचलित हो गया। आचार्य भिक्षु तेरापंथ के संस्थापक बन गए ।
१ आचार्य श्री भिक्षु
२ आचार्य श्री भारीमाल
३ आचार्य श्री रायचन्द
४ आचार्य श्री जीतमल
५ आचार्य श्री मघराज
६ आचार्य श्री माणकलाल
७ आचार्य श्री डालचन्द
८ आचार्य श्री कालूराम
९ आचार्य श्री तुलसी
१० आचार्य श्री महाप्रज्ञ
११ आचार्य श्री महाश्रमण
जब वे पृथक् हुए तब उनके साथ पांच साधु थे। जोधपुर की घटना है कि वहां एक दुकान में तेरह श्रावक सामायिक कर रहे थे। उसी समय स्थानीय दीवान फतहमलजी सिंघी घोड़े पर उधर से आ निकले। उन्होंने श्रावकों से पूछा-आप यहां सामायिक क्यों कर रहे हैं ? श्रावकों में गेरूलालजी व्यास वहीं थे। इसके उत्तर में उन्होंने बतलाया कि हमारे गुरु ने स्थानक का परित्याग कर दिया है, इसलिए स्थानक को छोड़कर हम यहां सामायिक कर रहे हैं। दीवानजी के आग्रह पर उन्होंने सारा विवरण कह सुनाया । उस समय वहां एक सेवक जाति का कवि पास में खड़ा था । उसने तेरह की संख्या को ध्यान में रखकर तत्काल एक दोहा बना डाला ।
आप आपरौ गिलो करै, ते आप आपरो मंत।
सुणज्यो रे शहर रा लाका, ऐ तेरापंथी तंत॥
उस समय आचार्य भिक्षु बीलाड़ा या उसके समीपवर्ती किसी क्षेत्र में थे। उन्होंने नामकरण के समय की सारी घटना को सुना तो उनकी प्रतिभा ने उस शब्द को स्वीकार कर लिया। तब उसी समय आसन छोड़ व हाथ जोड़कर अपने प्रभु को सम्बोधन करते हुए कहा-'हे प्रभो ! यह तेरा पंथ है' यह तुम्हारा मार्ग है। हम केवल इस मार्ग पर चलने वाले हैं।
आपने तेरापंथ का दूसरा अर्थ करते हुए कहा-जो तेरह नियमों का पालन करता है वह तेरापंथी है।
तेरह नियम
तेरापंथ के प्रमुख तेरह नियम हैं-पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्ति ।
पांच महाव्रत
१. अहिंसा
२. सत्य
३. अस्तेय
४. ब्रह्मचर्य
५. अपरिग्रह
पांच समिति
१. ईर्या समिति
२. भाषा समिति
३. एषणा समिति
४. आदान निक्षेप समिति -
५. परिष्ठापन समिति
तीन गुप्ति
१. मनो गुप्ति
२. वाक् गुप्ति
३. काय गुप्ति
इस प्रकार आचार्य भिक्षु के पंथ का नाम तेरापंथ प्रचलित हो गया। आचार्य भिक्षु तेरापंथ के संस्थापक बन गए ।
तेरापन्थ के आचार्य
तेरापन्थ मे 11 आचार्यो की गौरवशाली परम्परा है।१ आचार्य श्री भिक्षु
२ आचार्य श्री भारीमाल
३ आचार्य श्री रायचन्द
४ आचार्य श्री जीतमल
५ आचार्य श्री मघराज
६ आचार्य श्री माणकलाल
७ आचार्य श्री डालचन्द
८ आचार्य श्री कालूराम
९ आचार्य श्री तुलसी
१० आचार्य श्री महाप्रज्ञ
११ आचार्य श्री महाश्रमण
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